लव जिहाद का जैसे ही कोई मामला सामने आता है, वैसे ही कुछ लोग यह कहने लगते हैं कि लव जिओहद दरअसल कुछ नहीं है, लव जिहाद जैसा कुछ नहीं होता है! परन्तु क्या यह वास्तव में ऐसा ही है? क्या वास्तव में लव जिहाद जैसी घटनाएं दिखावा हैं? क्या लव जिहाद मुस्लिमों को बदनाम करने का तरीका है, जैसा बताया जा रहा है? यह नितांत ही हैरान करने वाली बात है।
गाजियाबाद में एक ऐसा आदमी पकड़ में आया है, जो आया तो था नर्मदेश्वर मंदिर में हिन्दू रक्षा सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी प्रबोधानंद गिरी महाराज की हत्या के लिए, परन्तु उसने जो खुलासे किए हैं, वह इतने डराने वाले हैं कि एक बार तो उस पर विश्वास भी नहीं हो पाएगा!
वह गया था किसी को मारने और जब पता चला कि वह केवल हत्या के इरादे से आया जिहादी ही नहीं है बल्कि वह लव जिहाद भी कर चुका है। वह तीन हिन्दू लड़कियों को निकाह के माध्यम से निशाना बना चुका है और साथ ही उसने 15 हिन्दू लड़कियों के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाए हैं और साथ ही उन्हें मुस्लिमों से निकाह की लिए मजबूर किया, नहीं तो वह उनके वीडियो लीक कर देगा!
आस मोहम्मद की कहानी ऐसी है जो हड्डियों तक में सिहरन पैदा कर सकती है। पाठक कल्पना कर सकते हैं कि आस मोहम्मद नामक आदमी कितना शातिर हो सकता है, और कितना नफरत से भरा कि उसने केवल तीन महिलाओं को अपनी हवस का शिकार बनाकर निकाह ही नहीं किया, बल्कि उसने जिन पंद्रह हिन्दू लड़कियों को अपने जाल में फंसाया, उनके साथ बेहरहमी की हर सीमा पार कर दी थीं।
मीडिया के अनुसार
“शारीरिक संबंध बनाने से पहले वह युवतियों को नशीला पदार्थ देता था और उनके बेहोश होने के बाद उनके साथ दरिंदगी करता था। आरोपित युवतियों के अंगों को दांत से काटकर घाव बनाता था और उनका वीडियो व फोटो खींच लेता था।“
उसकी दरिंदगी यहीं तक नहीं रुकती थी। चूंकि वह हिन्दू बनकर मिलता था और जब लड़की को उसकी वास्तविकता का पता चलता था तो वह धमकी देता था कि अगर उन्होंने किसी हिन्दू लडके से विवाह किया तो वह वीडियो और फोटो वायरल कर देगा और उनकी शादी टूट जाएगी, बदनामी होगी सो अलग!
और इसके चलते हिन्दू युवतियां उसकी हर बात मानने के लिए तैयार हो जाती थीं।
आस मोहम्मद जो कार्य करता था, क्या उसके लिए फंडिंग होती थी? यह प्रश्न इसलिए भी उठता है क्योंकि वह लड़कियों को फंसाने के लिए कई प्रकार की चालें भी चलता था, जैसे कि उसने यूपीएससी की परीक्षा भी गौतमबुद्ध नगर की एक लड़की को दिलाई थी। ऐसे में यह प्रश्न बहुत ही स्वाभाविक है कि आखिर कैसे इतने पैसे उसके पास आ गए कि उसने इतना बड़ा कदम उठाया।
स्वामी प्रबोधानंद के पीछे क्यों पड़ा था आस मोहम्मद
प्रश्न यह भी है कि आखिर स्वामी प्रबोधानंद के पीछे क्यों पड़ा था आस मोहम्मद!
स्वामी प्रबोधानंद गिरी महाराज ने पिछले वर्ष हरिद्वार में आयोजित धर्म संसद में भाग लिया था जहाँ पर विविध हिन्दू संतों ने हिन्दू समाज की रक्षा के लिए रणनीति बनाने के लिए बातें की थी, और जिसके चलते धर्म संसद ही नहीं बल्कि उसमें वक्तव्य रखने वाले साधु संत भी कट्टर इस्लामिस्ट जैसे जुबैर आदि के निशाने पर अ गए थे। मीडिया के सेक्युलर चैनल्स धर्म संसद के पीछे पड़ गए थे और इसे लेकर मुस्लिम नेता भी भड़क गए थे।
यह भी भारत और हिन्दुओं का दुर्भाग्य है कि यहाँ पर हिन्दू समाज अपने संरक्षण के लिए भी बात नहीं कर सकता है। जबकि यही मीडिया और हिन्दुओं के विरुद्ध विष उगलने वाले लोग “सिर तन से जुदा के नारों पर एकदम मौन रहते हैं!” उन्हें इस बात से कोई भी फर्क नहीं पड़ता है कि आखिर हिन्दुओं को मारने के लिए कौन क्या नारे लगा रहा है, हाँ! उन्हें इस बात से बहुत फर्क पड़ता है कि हिन्दू समाज अपने संरक्षण या सुरक्षा के लिए तो कोई कदम नहीं उठा रहा है।
यही कारण है कि नुपुर शर्मा के विरुद्ध आवाजें उठती हैं, परन्तु जो मुस्लिम दिन भर हिन्दुओं को काफ़िर आदि कहते हैं, उनके विरुद्ध लोग मौन रहते हैं। हिन्दुओं के प्रति घृणा फैलाने वाले लोग अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में तथा इस आड़ में कि हिन्दू धर्म अपनी आलोचनाओं को लेकर सहिष्णु है, बच निकलते हैं, तो वही हिन्दू यदि यह भी कह देते हैं कि उन्हें अपने लोगों की रक्षा करनी चाहिए, तो यही मीडिया और मुस्लिम नेताओं के अनुसार “भड़काऊ” भाषण बन जाता है और उसके लिए फिर उनका क़त्ल भी वाजिब हो जाता है।
यही कारण है कि आस मोहम्मद, जो हिन्दू लड़कियों का जीवन बर्बाद कर चुका था वह “21 सितंबर को ही आस मोहम्मद मंदिर परिसर में पहुंचा और समीर शर्मा बनकर मंदिर परिसर में एक रात रुका। बाद में वह पिस्टल, ब्लेड, चाकू लेकर दो अक्टूबर को मंदिर परिसर में समीर शर्मा बनकर महामंडलेश्वर की हत्या के इरादे से घुसा और सेवादारों ने उसे पकड़कर पुलिस को सौंप दिया।“
दुर्भाग्य से हिन्दू समाज जो निरंतर जीनोसाइड का सामना कर रहा है, उसके पास अपनी रक्षा का भी अधिकार न होना, अपने आप में ऐसी चीज है, जो सभी को विस्मय से भर देती है। हिन्दू समाज के शत्रु ऐसे हैं जो काफ़िर/पेगन के नाम पर उन्हें जीने ही नहीं देना चाहते हैं। सेक्युलर संस्थान या कहें कथित धर्मनिरपेक्ष संस्थान भी हिन्दुओं की रक्षा करने में विफल प्रमाणित हो रहे हैं, क्योंकि जहाँ एक ओर कथित स्थानीय अल्पसंख्यकों परन्तु वैश्विक बहुसंख्यकों जैसे ईसाई एवं मुस्लिमों को भारत में विशेष संरक्षण मिला हुआ है, तो वहीं हिन्दुओं के पास ऐसा अधिकार कम ही है!
जो पूरी तरह से मजहबी या रिलीजियस हिंसा होती है, उसे कानूनी मामले तक सीमित करके मामले को कम करने का प्रयास किया जाता है। हिन्दू को बचाने वाली मानसिकता किसी की भी दिखाई नहीं देती है।
देखना होगा कि इस मामले में और क्या तथ्य सामने निकल कर आते हैं! आस मोहम्मद, ने जिन लड़कियों को अपना शिकार बनाया, तो क्या उन्हें कभी न्याय मिल पाएगा? क्या उनकी पीड़ा कभीसामने आ पाएगी? क्या नेटवर्क सामने आ पाएगा?
ऐसे कई प्रश्न हैं, जिनके उत्तर भविष्य के गर्भ में हैं!