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Monday, June 5, 2023

बिहार में 15 वर्षीय आदित्य की हत्या भी उत्तराखंड की अंकिता की तरह दुखद है, परन्तु कथित जेंडर विमर्श में आदित्य की हत्या क्यों स्थान नहीं पा रही है?

आज कथित रूप से डॉटर्स डे मनाया जा रहा है और फिर आज एक बार हिन्दू भइयों एवं हिन्दू पुरुषों को कोसा जाएगा और लडकियां कहेंगी कि “हमारी मर्जी!, हमें कुछ नहीं सुनना, हमें किसी के इशारे पर नहीं नाचना, हमें यह नहीं करना, वह नहीं करना! इतने वर्षों तक गुलाम बनाया आदि आदि!” परन्तु इन सबके क्या दुष्परिणाम हो रहे हैं, इस ओर किसी का ध्यान है ही नहीं!

हम सब अपनी बेटियों को क्या बनाना चाहते हैं, क्या अब इन फेमिनिस्टों के इशारे पर हमारे संबंधों का निर्माण होगा? और हमारी बेटियाँ इनकी दृष्टि से अपने रिश्तों को देखेंगी? इस पर आप बार-बार प्रश्न उठाइये, क्योंकि इनकी व्यक्तिगत कुंठा के चलते हमारे बेटे न जाने कितने अत्याचारों का शिकार हो रहे हैं। हमारे बेटे मानसिक प्रताड़ना के उस दौर में पहुँच गए हैं कि वह लड़कियों का ही रूप धरने लगे हैं। यह मानसिक विकृति इन्हीं फेमिनिस्ट तथा इन तमाम तरह के दिनों के महिमामंडन का परिणाम है।

परन्तु आज बात एक बच्चे की, जिसकी जान लोगों के अनुसार लड़कियों को बचाने में गयी। बिहार के छपरा जिमें में जलालपुर हाई स्कूल में एक ऐसा मामला संज्ञान में आया है, जिसने इस फेमिनिस्ट चुप्पी पर सबसे बड़ा प्रश्न उठाया है। एक पंद्रह वर्ष का आदित्य दिन दहाड़े किसी तैफ, शाहिद और अरशद का शिकार होकर अपनी जान गंवा बैठता है, क्यों? क्योंकि यह कहा जा रहा है कि आदित्य शायद किसी लड़की के साथ छेड़छाड़ का विरोध किया था। इसका दुष्परिणाम आदित्य की दिन दहाड़े हुई हत्या के रूप में आया!

और आरोपी लड़कों ने आदित्य को तब तक अपने हथियारों का शिकार बनाया, जब तक उसकी जान नहीं निकल गयी। और सबसे हैरानी की बात यह है कि इस मामले में लड़कों ने सोशल मीडिया पर वीडियो भी बनाया था कि “आज जलालपुर में खेला होई”

परन्तु फिर भी दो दिनों से इस हत्या के सम्बन्ध में कोई भी हलचल नहीं है। यह हलचल क्यों नहीं है? क्या इसलिए क्योंकि अंकिता भंडारी की हत्या के चलते भारतीय जनता पार्टी से अपना स्कोर सेटल किया जा सकता है और अंकिता लड़की थी तो लोग उसके दर्द से खुद को अधिक बहता जोड़ लेंगे! परन्तु आदित्य, क्या आदित्य की हत्या और कारणों पर बात नहीं होनी चाहिए?

अंकिता हो या आदित्य, दोनों ही ऐसे वर्ग से आते हैं, जो लगातार जीनोसाइड का शिकार हो रहा है और इस समय तो कहाँ कहाँ से आक्रमण हो रहे हैं, इसका अहसास भी शायद ही होगा, फिर ऐसे में अंकिता की हत्या पर शोर मचाकर आदित्य की हत्या को क्यों दबाया जा रहा है क्योंकि इससे वामपंथी और फेमिनिस्ट एजेडा टूटता है? लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, परन्तु उन्हें समर्थन क्यों नहीं मिल रहा है?

क्या है फेमिनिस्ट एवं वामपंथी एजेंडा?

वामपंथी एवं फेमिनिस्टों का एक ही एजेंडा है और वह है किसी भी प्रकार से हिन्दुओं को ही बदनाम करना, हिन्दुओं को ही हर प्रकार से अपराधी स्थापित करना, और यह जो एजेंडा है, वहीं उन्हें झारखंड की अंकिता, जिसे शाहरुख ने जलाकर मार डाला था, और उत्तराखंड की अंकिता जिसे पुलकित आर्य ने मारा है, उसके बीच अंतर करने के लिए बाध्य करता है। यहाँ तक कि झारखंड की अंकिता के तो चरित्र हनन तक का प्रयास कर दिया गया था, शाहरुख के पक्षकारों ने, फिर भी फेमिनिस्ट चुप्पी नहीं टूटी थी!

हिरासत में जाते हँसते हुए शाहरुख की एवं शाहरुख की हिंसा का शिकार होकर जलकर मरी अंकिता

झारखण्ड की अंकिता के बाद न जाने और कितनी लड़कियों के साथ ऐसे हादसे सामने आए, परन्तु फेमिनिज्म चुप रहा, फेमिनिज्म की ठेकेदार चुप रहे क्योंकि उन घटनाओं में उनके प्रिय लोग सम्मिलित थे, अत: वह अपना क्रोध दबाए रहे, वह अवसर की प्रतीक्षा में थे क्योंकि उनके मौन पर प्रश्न उठ रहा था कि झारखंड में अंकिता की चीखों ने उन्हें परेशान नहीं किया?

फिर अचानक से ही उत्तराखंड में अंकिता के साथ यह जघन्य काण्ड हो गया। झारखंड की अंकिता हो या फिर उत्तराखंड की अंकिता, दोनों ही हिन्दू समाज की ऐसी लडकियां थीं जिन्हें अपनी सृष्टि की रचना करनी थी। यह दोनों ही शिकार हुई हैं, एक मजहबी हिंसा की तो एक हवस की हिंसा की!

परन्तु इन दोनों की आड़ में एक आदित्य है, जिसने अपने प्राण गंवाए हैं! परन्तु आदित्य की हत्या की चर्चा ही विमर्श से बाहर है! उसके तीन कारण हैं, एक तो उसकी हत्या कथित रूप से उन लोगों ने की है, जो फेमिनिस्ट समुदाय के प्रिय हैं अर्थात शैफ, साहिल और अरशद और दूसरा कारण है कि कहा जा रहा है कि उसने इन लड़कों का विरोध इसलिए किया था क्योंकि वह लडकियां छेड़ा करते थे और तीसरा सबसे महत्वपूर्ण कारण कि आदित्य की हत्या पर बात नहीं हो रही है क्योंकि आदित्य ब्राह्मण बच्चा था!

भारतीय राजनीति में ब्राह्मण विरोध अब एक ऐसी वास्तविकता है, जिसकी आड़ में आप कुछ भी कर सकते हैं, और जब ट्विटर के जैक डोर्सी के पोस्टर को लेकर विवाद हुआ था, तब कांग्रेस के नेता मनीष तिवारी ने कहा भी था कि जैक को क्यों दोष देना, ब्राह्मण ही नए यहूदी हैं और हमें इसके साथ ही रहना है

ब्राह्मणों का विरोध करने के नाम पर हर प्रकार का अपराध क्षम्य हो जाता है, ब्राह्मणवाद का विरोध करते करते लोग हिन्दुओं के खिलाफ चले जाते हैं और यही देखा जा रहा है। फिर ऐसे में कोई आदित्य जब किसी साहिल और अरशद के चाकुओं का शिकार होता है, तो वह क़ानून में दंड के भागी तो हो जाते हैं, परन्तु आदित्य की हत्या पर विमर्श नहीं होता है। कानून में दंड की बात इसलिए की जा रही है क्योंकि पुलिस ने दो आरोपियों को हिरासत में ले लिया है एवं शेष की तलाश की जा रही ही क्योंकि आदित्य के परिजनों ने 7 लोगों को आरोपित बताया है! दंड तो मिलेगा, परन्तु विमर्श में आदित्य की हत्या कब और कैसे आएगी?

यह बात दुखी करने वाली है, कि आदित्य तिवारी, जो बेचारा पंद्रह वर्ष की आयु में इसलिए इस दुनिया में नहीं है क्योंकि उसके लड़कियों के साथ छेड़खानी का विरोध किया था, तो वहीं आगामी महिला दिवस या डॉटर्स डे पर हिन्दू युवकों को गाली दी जाएँगी, और ब्राह्मणों को दोषी ठहराया जाएगा कि उनके कारण लोग महिलाओं का आदर नहीं करते हैं।

झारखंड की अंकिता, बिहार के आदित्य की हत्या के विमर्श पर चुप्पी एक बहुत बड़े षड्यंत्र का संकेत है एवं दुर्भाग्य यही है कि अपराधी यदि शाहरुख़, साहिल और अरशद है तो इस पर बहुत ही शातिर तरीके से चुप्पी साध ली जाती है एवं यदि मरने वाला आदित्य तिवारी है तो यह चुप्पी और भी गहरी हो जाती है क्योंकि अगले डॉटर्स डे पर कोसने के लिए भी कोई आदित्य ही चाहिए, तो आदित्य को मरना ही है, जीवन से भी और विमर्श से भी, जिससे फेमिनिस्ट डॉटर्स डे और महिला दिवस पर हमारी लड़कियों के दिल में आदित्य के लिए विष एवं शाहरुख़ के लिए इश्क भर सकें!

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