2023 का आगमन हो चुका है और इसी के साथ आगमन हुआ है कई नयी समस्याओं और कुछ पुरानी विकराल कुरीतियों का। आज भारत कुछ बहुत बड़ी समस्याओं को झेल रहा है, जिसमे से ईसाई मतांतरण की समस्या सबसे विकट समस्याओं में से एक है। यह एक ऐसी समस्या है जो ना मात्र हिंदुत्व पर प्रहार करती है, बल्कि देश की जनसांख्यिकी अनुपात और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरा उत्पन्न करती है।
ईसाई मतांतरण क्या है?
ईसाई मतांतरण यानि मत में परिवर्तन होने की क्रिया या भाव को मत परिवर्तन, धर्म परिवर्तन कहते हैं। धर्मांतरण किसी ऐसे नये धर्म को अपनाने की प्रक्रिया है, जो धर्मांतरित हो रहे व्यक्ति के पिछले धर्म से भिन्न हो। अगर कोई व्यक्ति बिना किसी लालच या दबाव में आये मतांतरण करता है, तो कोई समस्या नहीं होती क्योंकि भारतीय संविधान हर किसी को अपना मत चुनने का अधिकार देता है। लेकिन किसी के साथ छल और दबाव से करवाए जा रहे मतांतरण को कानूनन अपराध माना जाता है।
उच्चतम न्यायालय ने पिछले दिनों इस प्रकार से धोखे और दबाव में करवाए जा रहे ईसाई मतांतरण के मामलों पर गहरी चिंता व्यक्त की थी और साथ ही केंद्र सरकार को इसे रोकने का निर्देश दिया था। भारत के मूल स्वभाव और उसकी प्रकृति बदलने के इरादे से जो ईसाई मतांतरण हो रहा है, वह राष्ट्र जीवन के लिए दीमक की तरह है।
ईसाई रिलिजन अब्राहमिक मान्यता पर आधारित है, इसके विचारों को दुनिया भर में मिशनरी के तंत्र द्वारा फैलाया जाता है। ईसाई रिलिजन को मानने वाले अपने पंथिक विश्वास के वशीभूत पूरी दुनिया को ईसाई बनाने पर आमादा हैं। भारत में ईसाई मिशनरियों ने शिक्षा जैसी सेवाओं की आड़ में गरीबों के मतांतरण करने का षड्यंत्र शुरू किया है।
कुछ लोग यह भी कहते हैं कि आंकड़ों में तो ईसाइयों की जनसंख्या उतनी नहीं बढ़ी है, फिर यह ‘‘मतांतरण’’ का शोर क्यों मचाया जा रहा है? दरअसल ईसाई मिशनरियां देश के दलित, अल्पसंख्यक और पिछड़े समाज को ध्यान में रखकर एक दीर्घकालिक योजना को क्रियान्वित करने में लगी हुई हैं।
उदाहरण के लिए वर्ष 1961 में देश की कुल ईसाई जनसंख्या में केरल का हिस्सा 33.43 प्रतिशत तथा मिजोरम, मेघालय, नगालैंड, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश का हिस्सा 7.93 प्रतिशत था। अब केरल का हिस्सा घटकर 22.07 प्रतिशत रह गया है तथा उपरोक्त पांच राज्यों का हिस्सा बढ़कर 23.38 प्रतिशत हो गया है।
जनसंख्या की दृष्टि से पूर्वोत्तर के राज्य भले ही छोटे हैं, लेकिन इनका आर्थिक, सामारिक, और सांस्कृतिक महत्त्व बहुत ज्यादा है। मिशनरियों के इस षड्यंत्र का प्रभाव यह हुआ है कि पूर्वोत्तर के मिजोरम, नगालैंड और मेघालय आज ईसाई बहुल राज्य बन गए हैं। अरुणाचल तथा मणिपुर में जिस तेजी से मतांतरण हो रहा है, उसके आधार पर यह अनुमान लगाया जाता है कि आने वाले एक-दो दशकों में ये राज्य भी ईसाई बहुल हो जाएंगे।
इस लेख के माध्यम से हम पिछले वर्ष 2022 में घटित हुई ईसाई मतांतरण की 5 बड़ी घटनाओं के बारे में जानेंगे। हम यह देखने का प्रयास करेंगे कि कैसे ईसाई मिशनरियों ने हमारे समाज को अपने मकड़जाल में फंसा लिया है।
वर्ष 2022 में ईसाई मतांतरण की 5 बड़ी घटनाएं
उत्तरप्रदेश के सीतापुर जिले में पिछले महीने आठ दिन में मतांतरण के आठ मामले में सामने आए थे। पुलिस ने इस मामले में 37 आरोपियों पर मुक़दमे दर्ज किये थे और अभी तक 25 लोगों को गिरफ्तार भी कर लिया गया है। प्रदेश सरकार इन आरोपियों पर गैंगस्टर एक्ट लगा कर इनकी संपत्ति जब्त करने की कार्रवाई भी कर रही है। पुलिस ने मुख्य षड्यंत्रकारी डेविड अस्थाना, उसकी पत्नी रोहिणी और चार ब्राजीली नागरिकों समेत 10 लोगों को हिरासत में लिया था।
सदरपुर के शहबाजपुर में मतांतरण कार्यक्रम के आयोजक डेविड अस्थाना की कुंडली जब पुलिस ने खंगाली तो कई बात सामने आईं हैं। जांच में यह पता लगा है कि इन लोगों को अलग-अलग देशों से फंडिंग मिलती थी, और इन्होने 400 से ज्यादा लोगों को मतांतरण के लिए बुलाया था। बता दें कि जनपद में मतांतरण का पहला मामला 18 दिसंबर रविवार को सदरपुर के शहबाजपुर से सामने आया था।
मेरठ के मंगतपुरम से 400 हिन्दुओं का ईसाई मतांतरण करने का मामला खुलने के बाद जिले में हड़कंप मच गया था। इस ईसाई मतांतरण के षड्यंत्र का सूत्रधार दिल्ली में रहने वाला महेश पादरी था। बताया जाता है कि महेश पादरी ने लॉकडाउन के समय झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले हिन्दुओं की आर्थिक मदद और खाने की व्यवस्था कराई थी। इसके बाद वह 400 लोगों का मतांतरण कराने का प्रयास कर रहा था, जिसके लिए उसे विदेशों से फंडिंग भी मिली थी।
इस मामले की जांच करने पर पता लगा कि महेश पादरी और उसके सहयोगी दिवाली पर लोगों को पूजा करने से रोक रहे थे, वह इन लोगों के घर में लगे देवी-देवताओं के पोस्टर हटाने को भी विवश कर रहे थे। जब यह समस्या स्थानीय लोगों ने पुलिस को बताई तो कार्यवाही हुई और तीन महिलाओं सहित पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया। स्थानीय भाजपा नेता के नेतृत्व में मंगतपुरम की झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले सैकड़ों लोगों ने पुलिस के कार्यालय का घेराव किया था और आरोप लगाए कि उनको ईसाई बनने के लिए विवश किया जा रहा था।
मध्यप्रदेश के दमोह में पुलिस ने ईसाई मतांतरण का एक बड़ा षड्यंत्र विफल किया था। जांच में यह जानकारी भी सामने आई है कि दमोह के ‘यीशु भवन’ में क्रिसमस के समय 500 लोगों का मतांतरण कराने की योजना बनाई गई थी, हालांकि अब इससे जुड़े सभी लोग गिरफ्तार भी किए जा चुके हैं। दमोह जिला के यीशु भवन को इन ईसाई मिशनरी समूह ने अवैध मतांतरण का ‘अड्डा’ बना रखा था, जिसमें प्रमुख रूप से केरल की ईसाई संस्था सम्मिलित थी, इस संस्था से जुड़े 8 लोगों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज की गई थी और 2 लोगों को गिरफ्तार भी किया जा चुका है।
मतांतरण के इस ‘अवैध अड्डे’ में ईसाई मिशनरियों के द्वारा हिंदु महिलाओं को पानी में डुबकी लगवाई जाती है। उनका बपतिस्मा करने की प्रक्रिया के नाम पर उनके सिंदूर-बिंदी, चूड़ी और मंगलसूत्र निकलवाया जाता है एवं अंततः घर में स्थापित देवी-देवताओं के फोटो को पानी में विसर्जित करवाया जाता है। उन्हें पैसे और अन्य सुविधाओं का लालच दे कर ईसाई बनाया जाता था। यह लोग क्रिसमस पर 500 से ज्यादा हिन्दुओं का मतांतरण करने का षड्यंत्र रच रहे थे, जिसे निष्फल कर दिया गया।
पंजाब के लुधियाना से ईसाई मतांतरण सामने आया था जहां एक घर में चर्च बनाकर लोगों का धर्मांतरण कराया जा रहा था। स्थानीय लोगों ने जब इसका विरोध किया तो माहौल तनावग्रस्त हो गया था। चर्च के पास्टर ने शतानीय लोगों पर उन पर हमला करने के आरोप लगाते हुए गांव के ही तीन लोगों के अतिरिक्त नौ अन्य लोगों पर हत्या के प्रयास का मामला दर्ज करा दिया था, वहीं गांव की पंचायत ने आरोपों को झूठा और एक सोचा समझा षड्यंत्र बताया था।
सरपंच जगीर सिंह और गांव के लोगों का आरोप है कि गांव के ही रहने वाले बीरबल सिंह ने अपने घर में ही 8-10 साल पहले चर्च की स्थापना की थी, जहां प्रत्येक रविवार को प्रार्थना सभा रखी जाती है। ग्रामीणों का आरोप है कि यहां पर लोगों को प्रलोभन देकर उनका मतांतरण किया जाता है और गुरुद्वारा साहिब के विरुद्ध दुष्प्रचार किया जाता है, घरों में लगी गुरुओं के चित्र उतरवाए जाते हैं। स्थानीय लोगों ने रविवार को प्रार्थना सभा के विरोध में धरना भी दिया लेकिन इसके पश्चात भी मतांतरण लगातार जारी रहा।
झारखंड के हजारीबाग जिले के दारू प्रखंड के दिग्वार गांव से मतांतरण का मामला सामने आया था। प्राप्त जानकारी के अनुसार 15 वर्ष पहले ईसाई मिशनरियों द्वारा मतांतरण का षड्यंत्र शुरू हुआ था। देखते ही देखते प्रखंड के कई गांव मतांतरण की जद में आ गए। यहां जनजातीय समुदाय के लोग अधिक रहते हैं और इसी का फायदा उठाकर लोगों का धड़ल्ले से मतांतरण कराया गया।
जांच में यह पता लगा कि मिशनरियों ने यहां एक कमरे में बच्चों को शिक्षा देने के नाम पर अपना काम काज शुरू किया, बाद में इस कमरे को चर्च बना दिया गया जहां प्रार्थना सभाएं होने लगीं। लगभग दो वर्ष जब इसका खुलासा हुआ तो संथाल समुदाय के लोगों ने उग्र हो कर विरोध प्रदर्शन भी किया था और चर्च में तोड़फोड़ कर उसे पूरी तरह से नष्ट कर दिया था। ग्रामीणों ने बताया कि जंगली क्षेत्र और आवाजाही के सुगम साधन नहीं होने के कारण ईसाई मिशनरियों के लिए यहां मतांतरण कराना आसान था। यहां एक पादरी और दो पास्टर भी नियुक्त किए गए थे, जो बाद में हंगामा होने पर वहां से भाग गए थे।
ईसाई मतांतरण के माध्यम से मिशनरी भारतीय समाज के सांस्कृतिक चरित्र को बदलने का प्रयास कर रही हैं, यह कहीं ना कहीं एक राष्ट्रघाती कदम भी है। केंद्र सरकार यह कहकर कर्तव्य की इतिश्री नहीं कर सकती कि उसने मतांतरण में लिप्त संगठनों पर अंकुश लगाने के लिए विदेश से चंदा लेने संबंधी नियम-कानूनों में परिवर्तन किया है, क्योंकि सत्य यह है कि मिशनरी और उनके सहयोगी संस्थाएं इन कानूनों से बचने के कोई ना कोई रास्ते निकाल ही लेते हैं। विदेश से चंदा लेने के नियम-कानून वैसे ही होने चाहिए, जैसे आतंकी फंडिंग पर लगाम लगाने के लिए बनाए जा रहे हैं, तभी इस दुष्चक्र पर नियंत्रण हो पायेगा।