spot_img

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

spot_img
Hindu Post is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
20.8 C
Sringeri
Friday, March 29, 2024

विरक्त लगता ‘ऑफलाइन’ जीवन

पिछले दिनों एक रिपोर्ट पढ़ने को मिली कि  मोबाइल के अत्याधिक उपयोग से हेड फ़ोन के कारण कानों में अन्य दिक्कतों के साथ –साथ सीटी बजनें ; स्क्रीन पर नजर टिके रहने के कारण आँखों में सूखापन, भारीपन की  शिकायत आम होने लगी है l आवश्यकता, आनंद और लत  के बीच अंतर समाप्त  हो जाने पर होने वाली हानि का  एक उदहारण  है ये !

इससे उत्पन मानसिक समस्याएं भी कम नहीं l मानसिक विशेषज्ञों का मत है कि हमारा मन की प्रवृति सदा कुछ नया पाने की होती है, क्योंकि नयापन मस्तिष्क में ‘डोपामाइन’ नाम के उस तत्व का स्राव करता जो कि हमें प्रसन्न रखता है l और  इंटरनेट से नित्य नयी चीज़ आसानी से सुलभ है, इसलिए इसके फेरे में पड़े व्यक्ति को ऑफलाइन जीवन विरक्त महसूस होने लागता l

फिर क्या, उसका  इंटरनेट से पीछा छूटता नहीं और उसको एहसास भी नहीं हो पता कि सूचना के अत्याधिक बोझ से उसके अन्दर कितना तनाव पैदा हो चुका है l और इस आदत से न उबर पाने की  स्थिति में धीरे-धीरे वो गंभीर अवसाद की और पहुँच जाता है l हार्मोनल विसंगतियों से घिर जाता है सो अलग l ऊपर से सोशल मीडिया पर सक्रियता धीरे-धीरे बढ़कर रात्रि की  नींद को भी निगलने लगती है और पता भी नहीं चलता l

ये ध्यान रहे  जो लोग कम नींद लेते हैं, वो  कम उम्र में ही बूढ़े बन सकते हैं l क्योंकि, नींद के दौरान हमारी मसल्स, सेल्स और स्किन खुद को रिपेयर करती हैं l अपर्याप्त नींद लेने की स्थिति में उन्हें ये कीमती वक्त नहीं मिल पाता है और उनका स्वास्थ्य गिरता रहता है l

इतना भर नहीं l जिनके हाथों सदा मोबाइल दिखता हो मानकर चलिए  वो अक्सर अनावश्यक आदतों के भी शिकार पाए जाते हैं l स्वयं के साथ-साथ  औरों को भी ये किस प्रकार संकट में डाल सकते हैं, जब घर पर कोई बीमार पढ़ जाए तो इसके  दर्शन हो  जाते हैं l डॉक्टर पर कम ये गूगल पर ज्यादा भरोसा  रखते  हैं, और चिकित्सा जगत में  हंसी के पात्र  बन  ‘गूगल-डॉक्टर’ के रूप में जाने जाते हैं l गूगल पर दवा खोजकर मरीज को खिलाने से पहले इतनी अक्ल तो जरूरी है कि जो ज्ञान  एक  चिकित्सक नें वर्षों अध्ययन कर प्राप्त किया है, उसकी तुलना गूगल पर चंद क्लिक से कैसे संभव है l

बताने की जरूरत नहीं, अपनी आदत के वशीभूत  लोग इंटरनेट का ज्यादा उपयोग बोरियत को दूर करने, दोस्तों-रिश्तेदारों से बात करने, मनोरंजन करनें, ‘हैलो’, ‘गुड मोर्निंग’, ‘चित्र’  जैस गैर-जरूरी संदेशों के आदान प्रदान करने में ज्यादा  करते  हैं; व्यवसायिक उद्देश्य य जीवन से जुड़े  आवश्यक काम के लिए कम l ऐसे इंटरनेट  पर  ‘बस समय काटने वाले’ लोगों की संख्या  ७०%के उच्चतम स्तर पर है ! 

ध्यान रहे,  पूरी दुनिया मिलकर  केवल  गैर –जरूरी ‘गुड मोर्निग’ जैसी पोस्ट  न भेजने की  ठान ले तो कई  टन कार्बन  उत्सर्जित होने से रुक  सकती है l वायरलेस नेटवर्क को असेस करने के लिए उर्जा की खपत होती है, और परिणाम में हमें कार्बन डाईऑक्साइड मिलती है जो कि ग्लोबल ग्रीनहाउस उत्सर्जन का लगभग 3.7 % याने कि एयरलाइन्स इंडस्ट्री के बराबर l

वैसे जिनके लिए कृतिम-प्रकाश में रहते हुए  इंटरनेट का  सहारा लेना अनिवार्य है, वो कुछ बातें अपने खान-पान और दिनचर्या में जोड़कर हानि को कम कर सकते हैं, टाल भी सकते हैं l स्वास्थ-विशेषज्ञों की राय है कि दवाएं सक्रमण को समाप्त करती हैं, पर किसी भी रोगजनित  समस्या से हमारा शरीर स्वयं बेहतर लड़ाई लड़ सकता है l और इस आरोग्य-क्षमता को पाने के जो उपाय हम सदा सुनते-पढ़ते आयें हैं वे हैं पोषक तत्वों से युक्त खान-पान; और  योग-व्यायाम, जो कि आयुजनित रोगों को भी दूर रखनें की  अतरिक्त भूमिका निभाता है l

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

Rajesh Pathak
Rajesh Pathak
Writing articles for the last 25 years. Hitvada, Free Press Journal, Organiser, Hans India, Central Chronicle, Uday India, Swadesh, Navbharat and now HinduPost are the news outlets where my articles have been published.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.

Thanks for Visiting Hindupost

Dear valued reader,
HinduPost.in has been your reliable source for news and perspectives vital to the Hindu community. We strive to amplify diverse voices and broaden understanding, but we can't do it alone. Keeping our platform free and high-quality requires resources. As a non-profit, we rely on reader contributions. Please consider donating to HinduPost.in. Any amount you give can make a real difference. It's simple - click on this button:
By supporting us, you invest in a platform dedicated to truth, understanding, and the voices of the Hindu community. Thank you for standing with us.