“राजेश माँझी का गुनाह क्या, दलित होना या आरोपितों का मुस्लिम होना? हत्या पर केरल से बिहार तक वे चुप, जिनका जुनैद-इशरत पर उमड़ा था प्रेम” ऑपइंडिया, 16 May, 2023
“भारतीय मीडिया का एक बड़ा धड़ा तब कुछ ज़्यादा ही सक्रिय हो जाता है, जब किसी भाजपा शासित राज्य में कोई घटना होती है। लेकिन, जहाँ विपक्षी दलों की सरकारें हैं वहाँ कितनी भी वीभत्स घटना क्यों न हो जाए, उन्हें रियायत दी जाती है। क्या आपने सोशल मीडिया के बुद्धिजीवियों या फिर मेनस्ट्रीम मीडिया में कहीं इस खबर पर बहस होते देखा कि केरल में बिहार के एक दलित मजदूर की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई, वो भी मुस्लिमों द्वारा?
मेनस्ट्रीम मीडिया के स्टार एंकर्स इस घटना को कवर करने के लिए केरल नहीं पहुँचे। अख़बारों में इस घटना पर संपादकीय नहीं दिखे। सोशल मीडिया में बुद्धिजीवियों ने CPM सरकार की आलोचना नहीं की। दलित हितों की बात करने वाले खामोश रहे। यूट्यूब से कमाई करने वाले नए-नवेले वरिष्ठ पत्रकारों की जमात ने अख़बारों की कटिंग शेयर नहीं की। मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के शासन पर सवाल नहीं उठाए गए। मृतक के परिवार के लिए किसी मुआवजे की घोषणा नहीं की गई।
क्या आप जानते हैं इसका कारण क्या है? इसका कारण ये है कि केरल में वामपंथी दलों की सरकार है, भाजपा की विरोधी दलों की। इसीलिए, एक दलित मजदूर की मॉब लिंचिंग पर अंतरराष्ट्रीय अख़बारों में भी संपादकीय नहीं आता है। वहीं अगर उत्तर प्रदेश में दलितों का आपस का झगड़ा भी होगा तो उसे ऐसे पेश किया जाता है जैसे दलित पर अत्याचार हो रहा हो। आगे बढ़ने से पहले आइए जान लेते हैं कि केरल में हुआ क्या है।….”
पूरा लेख ऑपइंडिया पर पढ़ें