spot_img

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

spot_img
Hindu Post is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
19.6 C
Sringeri
Thursday, January 16, 2025

यशवंतराव होलकर प्रथम – एक ऐसा नायक जिसे भूला दिया गया

हम सभी के आराध्य छत्रपति शिवाजी महाराज ने “हिंदवी स्वराज्य” का जो बीज बोया था वहीं आगे चलकर धर्मवीर शंभुराजे, तारारानी, संताजी-धनाजी, पेशवा बाजीराव, मल्हारराव होलकर, महादजी सिंधिया एवं ऐसे ही कई अनगिनत लोगों के अथक प्रयासों के कारण एक विशाल वटवृक्ष यानि मराठा साम्राज्य के रुप में विकसित हुआ एवं इस महान साम्राज्य ने विदेशी शक्तियों से जमकर लोहा लिया। आगे चलकर जब भारतवर्ष में अंग्रेज़ों का प्रभाव बढ़ा तब भी एक ऐसा अद्वितीय वीर था जो उनके सामने दीवार बनकर खड़ा रहा और उस विभूति का नाम था यशवंतराव होलकर।

प्रारंभिक जीवन एवं परिवार

यशवंतराव होलकर का जन्म 03 दिसंबर 1776 को वाफ़गांव में हुआ था। उनकी माता का नाम यमुनाबाई था और पिता तुकोजीराव थे जो मातोश्री अहिल्याबाई के निधन के बाद होलकर गद्दी पर विराजमान हुए तथा जिन्होंने पेशावर विजय और पानीपत के तीसरे युद्ध के पश्चात मराठा पुनरुद्धार में अहम भूमिका निभाई।

शुरुआती प्रतिभा

यशवंतराव अपने समय के एक अत्यंत कुशल सेनानायक थे तथा इसका प्रमाण उन्होंने बहुत पहले ही दे दिया था जब मात्र 19 वर्ष की आयु में वे अपने पिता के साथ युद्ध में शामिल हुए और खारडा की लड़ाई में निज़ाम को पराजित किया। अकाउंटेंसी में शिक्षित होने के साथ ही वे मराठी, फ़ारसी एवं उर्दू में भी निपुण थे।

आपसी संघर्ष

अपने पिता की मृत्यु के बाद काशीराव और मल्हारराव द्वितीय के बीच होलकर राजगद्दी को लेकर संघर्ष छिड़ गया। काशीराव के अपने भाइयों के साथ संबंध अच्छे नहीं थे। उन्होंने अपने तीनों भाइयों पर हमला करवा दिया, जिसमें मल्हारराव मारे गए, जबकि यशवंतराव और विठोजीराव गंभीर रूप से घायल होकर वहां से भाग निकले और नागपुर में शरण ली।काशीराव अंततः होलकर राजा बने। अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने ग्वालियर के तत्कालीन नरेश दौलतराव सिंधिया से नजदीकियां बढ़ाईं। बाद में दौलतराव सिंधिया ने नागपुर के राजा पर दबाव डाला, जिसके कारण नागपुर नरेश ने यशवंतराव को गिरफ्तार कर वापस भेजने की योजना बना ली। हालांकि, यशवंतराव को इसकी सूचना मिल गई और वे पहले ही वहां से भाग निकले। यह समाचार मिलते ही उनके पुराने और विश्वस्त सहयोगी एक बार फिर उनके साथ आ गए। और इस प्रकार यशवंतराव की शक्ति धीरे धीरे बढ़ती गई।

राज्याभिषेक

प्रारंभिक वर्षों में तो वे अपने भतीजे खंडेराव होलकर के प्रतिनिधि के रूप में कार्यभार संभाल रहे थे। परन्तु खंडेराव की मृत्यु के पश्चात 1805 में उन्होंने स्वयं को संप्रभु शासक के रूप में स्थापित कर लिया।

अंग्रेज़ों से कड़ी टक्कर

यशवंतराव आजीवन अंग्रेज़ों के घोर विरोधी रहे। उन्होंने ब्रिटिशों को कुल 18 बार पराजित कर अपने आप में एक अलग ही इतिहास रच दिया। वे यशवंतराव ही थे जिन्होंने अंग्रेज़ों के विरुद्ध संपूर्ण भारतवर्ष के राजाओं को एकजुट करने का दो बार प्रयास किया। इन राजाओं में स्वयं पंजाब के शेर महाराजा रणजीत सिंह भी थे। हालांकि उस समय तक अधिकतर शासकों ने अंग्रेज़ों से संधि कर ली थी या कमज़ोर हो चुके थे जिसके कारण यशवंतराव के प्रयास पूर्ण रूप से सफल नहीं हो सके। उनकी अदम्य वीरता से घबराकर अंग्रेज़ बिना किसी शर्त सुलह के लिए भी तैयार थे। कुछ इतिहासकारों ने उन्हें “भारत का नेपोलियन” भी कहा है।

मृत्यु

किसी और से सहायता न मिलती देख यशवंतराव अकेले ही ब्रिटिशों को भारतभूमि से खदेड़ने के प्रयास में जुट गए। अपने अथक प्रयासों से उन्होंने एक लाख सैनिकों की विशाल सेना खड़ी कर दी तथा प्रचुर मात्रा में गोला बारूद भी जुटा लिया। हालांकि इस दौरान अपने स्वास्थ्य पर ध्यान ना दे पाने के कारण उनकी सेहत बिगड़ती चली गई। वे विदेशियों के विरुद्ध कोई निर्णायक कदम उठा पाते इससे पहले ही 28 अक्टूबर 1811 को भानपुरा में 34-35 वर्ष की आयु में उनका असामयिक निधन हो गया। उनकी मृत्यु के बाद भी पुत्री भीमाबाई ने अंग्रेज़ों से संघर्ष जारी रखा। ये यशवंतराव के अतुलनीय शौर्य का ही परिणाम था जिसके कारण उनके निधन के बाद भी इन्दौर राज्य कुछ समय तक अंग्रेजों के प्रभाव से मुक्त रहा।

ऐसे महान व्यक्तित्व को हमारा शत शत नमन।

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.