महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं तथा नतीजें सबके सामने हैं। इस बार दोनों ही प्रमुख गठबंधन महायुति और महा विकास आघाड़ी में कड़ी टक्कर की उम्मीद जताई जा रही थी लेकिन परिणाम इससे बिल्कुल विपरीत आए। महायुति ने 288 में से 235 सीटें जीतकर एकतरफा जीत हासिल की वहीं महा विकास आघाड़ी मात्र 50 सीटें ही जीत पाई। महायुति में बीजेपी ने 145 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें उन्हें 132 पर जीत मिली। वहीं शिव सेना (शिंदे गुट) को 81 में से 57 और एनसीपी (अजीत गुट) को 59 में से 41 सीटें प्राप्त हुई। वहीं बात करें महा विकास आघाड़ी की तो इसमें कांग्रेस को 102 में से 16, शिव सेना (उद्धव गुट) को 92 में से 20 और एनसीपी (शरद गुट) को 86 में से महज़ 10 सीटें हासिल हुई।
इस ऐतिहासिक जीत की समीक्षा अत्यन्त आवश्यक है। आइए, हम प्रमुख बिंदुओं पर नज़र डालते हैं:
आरएसएस की भूमिका
हरियाणा विधानसभा चुनाव की ही तरह महाराष्ट्र चुनाव में भी आरएसएस ने इस विजय में अहम भूमिका निभाई। इस चुनाव से पहले ही संघ ने महायुति गठबंधन के पक्ष में जनमत तैयार करने हेतु व्यापक प्रचार अभियान शुरु किया था। स्वयंसेवकों ने छोटी छोटी टोलियां बनाई तथा राज्य के प्रत्येक कोने में जाकर लोगों से संपर्क किया। इन टोलियों ने मोहल्ले में जाकर परिवारों से मिलकर 5 से 10 लोगों के छोटे समूहों में बैठकें आयोजित की और राष्ट्रीय हित, हिंदुत्व, सुशासन और विकास जैसे ज़रूरी मुद्दों पर लोगों को जागरुक किया।
लाड़की बहीण योजना
इस चुनाव में लाड़की बहीण योजना भी गेमचेंजर साबित हुई। इसके अंतर्गत महिलाओं के खाते में हर महीने 1500 रूपये डाले जाते हैं। तो इस तरह 5 माह में हर महिला के खाते में 7500 रूपये डाले गए। इस योजना का प्रभाव उन 15 सीटों पर देखा गया जहां महिलाओं ने अधिक वोटिंग की जिनमें से 12 पर महायुति ने जीत हासिल की।
वोटों का ध्रुवीकरण
इस चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी के नारे ‘”एक हैं तो सेफ हैं” और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नारे “बंटेंगे तो कटेंगे” ने ज़बरदस्त कमाल दिखाया। इसके अलावा महा विकास आघाड़ी को जारी किए गए फतवों ने भी बहुत प्रभाव डाला और इसका सीधा फायदा महायुति गठबंधन को मिला। जिस तरह लोक सभा चुनाव में मुस्लिम कंसॉलिडेशन हुआ था उस प्रकार इस बार हिंदुओं ने एकजुट होकर मतदान किया।
ओबीसी वोट्स का एकीकरण
महाराष्ट्र के लोक सभा चुनाव में मराठों ने एकजुट होकर विपक्षी गठबंधन को समर्थन दिया था जिससे बीजेपी को तगड़ा झटका लगा और इसी से सीखते हुए उन्होंने ओबीसी मतदाताओं को ध्यान में रखते हुए अपनी रणनीति बनाई। चंद्रशेखर बावनकुले को राज्य में पार्टी अध्यक्ष नियुक्त किया गया तथा माली, बंजारा और धनगर समुदाय को एक करके चुनावी रण में उतारा। धनगर बंधुओं की एक पुरानी मांग को मानते हुए अहमदनगर का नाम बदलकर अहिल्यानगर कर दिया गया साथ ही बंजारा विरासत संग्रहालय भी स्थापित किया।