देश में हिन्दू मंदिरों को कभी अतिक्रमण तो कभी विकास के नाम पर ढहाए जाने की प्रक्रिया जोरों शोरों से चल रही है । दक्षिण में भी पिछले दिनों यह देखने को मिला जब चेन्नई के पास नरसिम्हा अंजनेय मंदिर को इस आरोप में ध्वस्त कर दिया गया, कि वह अड्यार नदी के जलमार्ग पर अतिक्रमण कर रहा है । परन्तु यह विरोधाभास है कि उस स्थान पर अतिक्रमण करने वाले अन्य रिलिजन के संस्थानों को तो छुआ ही नहीं गया बल्कि साथ ही वाणिज्यिक एवं व्यापारिक संस्थानों को भी नहीं छुआ गया । इतना ही नहीं मंदिर को अत्यंत अपवित्रता के साथ तोड़ा गया ।
चेन्नई के पास वरदराजपुरम में श्री नृसिंह अंजनेय मंदिर को कुछ सप्ताह पहले अतिक्रमण करता हुआ घोषित किया गया था और भूमि खाली करने के लिए एक नोटिस जारी किया गया था। हालांकि भक्तों ने सरकारी अधिकारियों पर आरोप लगाया कि उन्होंने यह कहा था कि वह अगले ही दिन मंदिर ध्वस्त करने आ रहे हैं। अगले दिन अधिकारियों के आने पर भक्त मंदिर के अंदर धरने पर बैठ गए और मंदिर से बाहर जाने से इनकार कर दिया। कुछ लोग विरोध में मंदिर की मीनार पर भी चढ़ गए और अधिकारियों को जाना पड़ा क्योंकि उनके पास भक्तों को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त पुलिस नहीं थी।
भक्तों ने मंदिर को बचाने के लिए हर संभव प्रयास किए, उन्होंने एक ऑनलाइन अभियान भी चलाया जिसमें एक महिला भक्त रोती हुई दिखाई दे रही है. उन्होंने कहा कि यह मंदिर यहाँ पर 30 वर्षों से हैं और वर्ष 2015 में तत्कालीन आईएएस ने मंदिर को आकर देखा था और कहा था कि यह जलमार्ग को बाधित नहीं क्र रहा है. परन्तु निगम के अधिकारियों ने यह दावा किया कि इसे वर्ष 2015 में ही अतिक्रमण करने वाला बता दिया था तथा इस प्रकार उसे गिरा दिया गया. परन्तु यदि यह सत्य है तो ऐसा क्यों है कि शेष इमारतें वहां पर मौजूद हैं?
भक्त यह प्रश्न कर रहे हैं. परन्तु अब प्रश्नों का कोई भी मोल नहीं है क्योंकि मंदिर ढहाया जा चुका है और शेष इमारतों को छोड़ दिया गया है.
यह मन्दिर मुदिचुर में स्थित है, जहाँ पर काफी समय से जल मार्ग में बाधा की समस्या आ रही है. वर्ष 2017 में जब वहां पर बाढ़ आई थी तो वहां के निवासियों ने सरकार पर अकुशलता का आरोप लगाया था. राज्य राजमार्ग विभाग ने बरसाती नालों का काम पूरा नहीं किया था और जो काम किया था, उसके विषय में लोगों ने आरोप लगाया कि वह बहुत ही खराब था, क्योंकि नाले बहुत कम क्षमता वाले बनाए थे. निवासियों का यह भी आरोप है कि निगम के अधिकारी अतिक्रमण करने वाले लोगों के साथ मिले हुए हैं, जिन्होनें सरकारी जमीन हथिया ली है और वर्षा के जल के प्रवाह को रोक दिया है.
जल निकायों पर कितनी बुरी तरह से अतिक्रमण किया गया है, इसकी जानकारी देने के लिए, इकोनॉमिक टाइम्स की यह रिपोर्ट एक पर्यावरण कार्यकर्ता और प्रोफेसर को उद्घृत करती हुई यह टिप्पणी करती है कि, “पोरूर झील का मूल जल फैलाव क्षेत्र 800 एकड़ था; अब यह 100 एकड़ या उससे कम है। निजी पक्षों को काफी जमीन दी गई है। भूमि उपयोग के पैटर्न को बदल दिया गया और उनके लिए कानूनी बना दिया गया। इन्हें वैधिक अतिक्रमण कहा जाता है।” एक अन्य कार्यकर्ता कहते हैं, “भले ही पेरुंगलाथुर झील में 10 घर प्रति एकड़ के साथ 3,000 बस्तियां हैं, जबकि राजस्व रिकॉर्ड केवल 1 घर प्रति एकड़ के साथ 100 बस्तियां दिखाते हैं”।
चाहे किसी भी दल की सरकार हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, यह देखा गया है कि वह लोगों को जल निकायों और जलमार्गों को अतिक्रमण करने देती है। लेकिन जब उन्हें हटाने की बात आती है तो केवल मंदिरों को निशाना बनाया जाता है जबकि तथाकथित “वैध अतिक्रमण” को ऐसे ही छोड़ दिया जाता है। हिंदू संगठनों का आरोप है कि द्रमुक के सत्ता में आने के बाद से अब तक 150 से अधिक मंदिरों को तोड़ा जा चुका है। तमिलनाडु के लोगों का आरोप है कि सरकार मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश के आधार पर जलाशयों और जलमार्गों में अतिक्रमण हटाने के बहाने मंदिरों को ध्वस्त कर रही है।
पिछले महीने उच्च न्यायालय ने सरकारी अधिकारियों को इस विषय में फटकार लगाई थी कि कैसे उन्होंने एक पादरी की सहायता चर्च को बचाने में की थी, जो जल निकाय का अतिक्रमण कर रहा था। तहसीलदार ने अदालत से कहा था कि जनता को चर्च की उपस्थिति पर आपत्ति नहीं है और इसलिए इसे गिराने की कोई आवश्यकता नहीं है। अदालत द्वारा पक्षपात के लिए सरकार की आलोचना करने के बाद ही चर्च को तोड़ा गया था।
उसी दिन, निगम के अधिकारियों को चेन्नई में एक बस स्टैंड के प्रवेश द्वार पर एक शिशु जीसस और मैरी की मूर्ति दिखाई दी। जमीन पर कब्जा करने वाले व्यक्ति के पास से जमीन बरामद की गई है। बस स्टैंड का निर्माण अभी भी किया जा रहा है और मूर्ति के कारण सुगम यातायात में बाधा आ रही है। जब अधिकारी प्रतिमा को हटाने के लिए गए, सरकार के इस कदम का विरोध किया गया। प्रदर्शनकारियों को शांत करने के बाद अधिकारियों ने सावधानीपूर्वक प्रतिमा को हटा दिया और बहुत ही सुरक्षित तरीके से तहसीलदार के कार्यालय में उसे रख दिया। उन्होंने मूर्ति स्थापित करने के लिए एक वैकल्पिक भूमि का भी वादा किया है।
हालांकि यह पूरे तरीके से नहीं कहा जा सकता है कि कि मई के बाद से द्रमुक सरकार द्वारा 150 से अधिक मंदिरों को वास्तव में ध्वस्त कर दिया गया था, लेकिन अधिकारियों ने पूर्वाग्रह प्रदर्शित किया है और उनके विध्वंस अभियान के दौरान चर्चों या मस्जिदों के लिए बहुत अधिक सम्मान देखा गया है, जबकि हिन्दू मंदिरों के प्रति एक दुराग्रह दिखा है।
जब मानसून की बारिश के दौरान चेन्नई में बाढ़ आई थी, तो एक युवती ने सोशल मीडिया में एक वीडियो पोस्ट किया था कि कैसे उसके आवासीय क्षेत्र से सटे जलमार्ग पर एक चर्च द्वारा अतिक्रमण किया गया है, जो कई बार निरीक्षण करने के बावजूद अभी भी खड़ा है और बारिश के पानी के प्रवाह को रोक रहा है।