जहां तीन दशकों तक वामपंथीयों का शासन रहा, ऐसे पश्चिम बंगाल का किस्सा बड़ा दिलचस्प है| प्रदेश के पूर्व और पश्चिम मिदनापुर, नदिया, उत्तरी बंगाल, उत्तरी २४ परगना जैसे इलाके बंगलादेश की सीमा से लगे हुए हैं| और, कानून से बचकर सरंक्षण पाने के लिए यहाँ आ बसे बंगलादेशी घुसपेठीये कभी वामपंथीयों के समर्थक हुआ करते थे| लेकिन ममता की टी.एम.सी. के सत्ता में आते ही उसके लिए ‘मर-मिटने’ के लिए तत्पर हो उठे| इतने कि पार्टी के इशारे पर इन में मौजूद जेहादी तत्वों नें संगठित हो वामपंथीयों को ठिकाने लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी|
बात यहाँ तक आ पहुंची कि अपना खेत जोतना तक वामपथीयों लिए मुश्किल हो गया है| कई अपना राशन-कार्ड उनके हांथों गवां बैठे, जिसके कारण सरकारी योजनाओं का लाभ उनके लिए दूर की कोड़ी हो गया| इन परस्थितीयों में एक समय जब इन्होनें देखा कि हिन्दू धुर्वीकरण से भाजपा मजबूत स्थिती में आने लगी, तो इनमें से कईयों ने उसकी शरण में जाने में अपनी भलाई समझी| [देखें, ‘इंडिया टुडे’-१९ सितम्बर,२०१८]
पर आज वामपंथी बंगाल के अपने कटु अनुभवों को याद करने को तैयार नहीं| यदि याद करें तो दिल्ली वासियों की घुसपेठीयों के हांथों हुई दुर्गती को समझने में गलती न करें| उनके साथ जो सरकार के विरुद्ध आज खड़े हैं उन्हें शायद इस बात का ध्यान नहीं कि ‘अमेंस्टी इंटरनेशनल’ के हवाले से खबर आयी थी कि मयन्मार में रोहिंग्याओं नें कभी जेहादियों की रहनुमायी में बोद्धों के साथ- साथ वहां रहने वाले अल्पसंख्यक हिन्दुओं के लिए भी जीवन दूभर बना डाला था| जिसके परिणामस्वरुप वहां की जनता एकजुट हो उन्हें देश के बाहर खदेड़ने के लिए बाध्य हो उठी थी|
दरअसल जिस पर गुजरती है उसे ही समझ में आता है| आपको याद होगा केरल में एक हिन्दू लड़की हदिया का मुस्लिम लड़के के साथ निकाह का मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया था| क्योंकि, लड़की के पिता अशोकन ने इसे ‘लव-जिहाद’ का मामला बताया था| लेकिन कोर्ट ने हदिया का पक्ष सुनकर उसे इस्लाम के अनुसार वैवाहिक जीवन बीताने की अनुमति दे दी थी| लेकिन बाद में अशोकन ने अपने ५० साथियों के साथ भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली थी| यही अशोकन कभी समर्पित कामरेड हो वामपंथ के लिए जूझ- मरने कों तैयार रहा करता था| लेकिन लव-जिहाद के मामले में अपने दल का सहयोग मिलने के स्थान पर जब उसे उसकी ओर से विरोध का सामना करना पड़ा तो उसे वामपंथीयों की ‘धर्मनिरपेक्षता’ के मायने समझ में आ गए|
झूठी ‘धर्मनिरपेक्षता’ का सबसे बड़ा धोका जिसने खाया उसे हम जोगेंद्र नाथ मंडल के नाम से जानते हैं| विभाजन के वक्त बाबा साहब अम्बेडकर के मना करने के बाद भी मुस्लिम लीग का साथ देते हुए ये कभी पाकिस्तान जा बसे थे| और वहां के प्रथम कानून मंत्री भी बन गए| लेकिन जल्दी ही उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ, और उन्होंने पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधान मंत्री लियाकत अली खान को एक पत्र लिखा – ‘पूर्वी बंगाल में आज क्या हालात हैं? मुझे मुसलामानों द्वारा हिन्दुओं की बच्चीयों के साथ दुष्कर्म की लगातार ख़बरें मिल रहीं हैं| मुसलमानों द्वारा हिन्दू वकीलों, डॉक्टरों, व्यापारियों, दुकानदारों का बहिष्कार किया गया, जिसके बाद वो पलायन के लिए मजबूर हुए| हिन्दुओं द्वारा बेचे गए समान की मुसलमान पूरी कीमत नहीं दे रहे हैं| विभाजन के बाद पश्चिमी पंजाब में पिछड़ी जाति के एक लाख लोग थे| उनमें से बड़ी संख्या को बलपूर्वक इस्लाम में परिवर्तित कर दिया गया| मुझे एक सूची मिली है जिसके अनुसार ३६३ मंदिर और गुरुद्वारे मुस्लिमों के कब्जे में हैं| इनमें से कुछ को कसाई खाना और होटलों में तब्दील कर दिया है|’
और, इसके बाद पाकिस्तान और उसके हुक्मरानों से मोह-भंग होने पर जोगेंद्र नाथ मंडल भारत लौट आये थे, और पश्चिम बंगाल में रहते हुए वहीँ पर ५ अक्टूबर, १९६८ को देह त्यागा|