spot_img

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

spot_img
Hindu Post is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
27.5 C
Sringeri
Wednesday, November 13, 2024

कोरोना का डर और मीडिया द्वारा फैलाया हुआ डर का जाल एवं बढ़ते अवसाद

कोविड-19 इस सदी की वह त्रासदी है, जिससे हम सब निकलना चाहते हैं और जिससे बाहर निकलने के लिए यह पूरी दुनिया एक जद्दोजहद में लगी है! वैक्सीन से लेकर हर प्रकार के उपाय किए जा रहे हैं। परन्तु बहुत कुछ ऐसा है जिस पर अभी भी बात होनी है। कोरोना में जो जानें गईं, वह कभी वापस नहीं आएंगी परन्तु उन घटनाओं के बहाने या उन रिकार्ड्स के बहाने मीडिया आम जनता में क्या और कैसा भय भर रहा है वह भी देखना होगा।

अभी ओमिक्रोन की घातकता का अनुमाना नहीं लगा है, अभी यह भी नहीं पता है कि उसके लक्षण क्या हैं और मीडिया ने डर फैलाना आरम्भ कर दिया है। मीडिया का कार्य यथास्थिति को बताना होता है, और वह भी इस तरीके से कि जिसमें लोगों में भय न फैले, लोग डर न जाएं। पर भारतीय मीडिया जैसे सब कुछ भूल कर इस डर को बेच रहा है। टीआरपी की दौड़ इतनी है कि वह भूल गया है कि उसका मूल कार्य क्या है?  कहीं वह अपनी रिपोर्टिंग से अवसाद को तो नहीं बढ़ा रहा? यह प्रश्न अब पूछा जाना ही चाहिए, क्योंकि कोरोना की पहली और दूसरी लहर में अवसाद ग्रस्त लोगों की संख्या में वृद्धि हुई थी और अभी से ही मीडिया ओमिक्रोन का डर बेचने लगा है। और उसका दुष्परिणाम भी दिखने लगा है।

अब और लाशें गिनने की हिम्मत नहीं है!

कानपुर के एक डॉक्टर ने ओमिक्रोन के भय के चलते एक ऐसा कदम उठाया, जो कोई सोच भी नहीं सकता था। “ओमिक्रोन हम सभी को मार डालेगा!” यह शब्द इसलिए विचलित करने चाहिए क्योंकि इन्हें किसी और ने नहीं बल्कि एक डॉक्टर ने ही लिखा है। एक डॉक्टर जो जीवन देता है और वह इस हद तक अवसाद में आ गया कि उसने अपने परिवार को ही मार डाला?

https://www.aajtak.in/crime/news/story/kanpur-triple-murder-doctor-killed-wife-son-daughter-omicron-corona-depression-police-kanpur-uttar-pradesh-tstc-1367740-2021-12-04

कानपुर के डॉक्टर सुशील कुमार  ने अपनी पत्नी चंद्रप्रभा और बेटे शिखर के साथसाथ अपनी बेटी खुशी को भी मार डाला।  और एक दस पन्ने का सुसाइड नोट लिखा। जिसमें सार यही है कि “अब और कोविड नहीं। यह ओमिक्रोन हम सभी को मार डालेगा। अब और लाशें नहीं गिननी हैं। अपनी लापरवाही के कारण अपने कैरियर के उस मुकाम पर फंस गया हूँ, जहाँ से निकलना अब मुमकिन नहीं हैं।”

डॉक्टर सुशील इस हद तक अवसाद में थे कि उन्होंने लिखा कि वह अपने परिवार को कष्ट में नहीं छोड़ सकते हैं और इसीलिए वह अपने परिवार को मुक्ति देकर खुद भी मुक्त होने जा रहे हैं।”

कोरोना के चलते अवसाद के कई मामले सामने आए हैं

ऐसा नहीं है कि कोरोना अभी ही अवसाद लाया है। कोरोना की दूसरी लहर में भी 17 अगस्त 2021 को मंग्लुरु के बैकम्बाड़ी में रहने वाले दंपत्ति ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। उन्हें कोरोना के लक्षण प्रतीत हुए, और उन्होंने आत्महत्या से पहले पुलिस कमिश्नर को ऑडियो नॉट बहेकर कहा था कि मीडिया का डर बर्दाश्त नहीं होता।

ऐसे ही एक मामला सामने आया था गुजरात में द्वारका से, जहाँ पर पिता की कोरोना से मौत के बाद पूरे परिवार ने आत्महत्या कर ली थी।

ऐसा ही एक मामला उत्तर प्रदेश के बागपत से आया था जहाँ पर एक युवक में धारदार हथियार से गर्दन काटकर अपनी जान दे दी थी। बागपत निवासी सुनील पिलखुआ में सैलून में काम करता था, बुखार आने पर उसने खुद को घर में बंद कर लिया था और फिर उसने ऐसा कदम उठा लिया था।

उसी के साथ एक मामला दिल्ली से आया था जहाँ पर सफदरजंग अस्पताल में कोरोना वायरस के मरीज ने सातवीं मंजिल से कूदकर अपनी जान दे दी थी, और वह ऑस्ट्रेलिया से वापस लौटा था। कर्नाटक में भी एक 57 वर्ष के व्यक्ति ने कोरोना वायरस से संक्रमित होने के डर से ही आत्महत्या कर ली थी।

एनसीआरबी के अनुसार बच्चों में बढ़ रहा है अवसाद!

एनआरसीबी के आंकड़ों के अनुसार देश में पिछले वर्ष लगभग 31 बच्चों ने रोजाना आत्महत्या की थी। विशेषज्ञों के अनुसार कोरोना के कारण मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ा था।

बाल संरक्षण के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन सेव द चिल्ड्रेन के उपनिदेशक प्रभात कुमार ने कहा था कि कोरोना के कारण स्कूल बंद होने के अतिरिक्त सामाजिक अलगाव के कारण बच्चों के साथ साथ बड़ों का भी मानसिक स्वास्थ्य बुरी तरह से प्रभावित हुआ है।

मीडिया की भूमिका

किसी भी घटना में मीडिया की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। मीडिया ने सकारात्मक भूमिका नहीं निभाई ऐसा नहीं कहा जा सकता है, परन्तु फिलहाल में कोरोना को लेकर जिस तरह से रिपोर्टिंग की गयी थी, उसने मीडिया की भूमिका पर प्रश्न चिन्ह लगा दिए थे। भारत से बुरी स्थिति अमेरिकी और यूरोपीय देशों की रही, परन्तु वहां की रिपोर्टिंग और भारत की रिपोर्टिंग में जमीन आसमान का अंतर रहा।

Workers and relatives stand around burning funeral pyres at night
https://www.bbc.com/news/in-pictures-56913348

https://www.ecdc.europa.eu/en/geographical-distribution-2019-ncov-cases

यह सत्य है कि कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की कमी हुई और कई लोग मारे गए, परन्तु यह पूरे विश्व में हो रहा था और समूचा विश्व उस आपदा का सामना कर रहा था, जो उसके सामने अचानक से आ गयी थी। परन्तु यह भारत ही था, जहाँ पर मीडिया ने मरते हुए लोगों की तस्वीरें बेचीं! यह भारत ही था, जहाँ की कथित संवेदनशील मीडिया ने चिताओं की तस्वीरें बेचीं, और यह भारत ही था जहाँ पर डर को बेचकर लोगों के दिल के भीतर अवसाद भरा जा रहा था।

दानिश सिद्दीकी से लेकर न्यूयॉर्क टाइम्स और भारत के सभी चैनल मिलकर अपनी टीआरपी के लिए मौत बेच रहे थे। और बढ़ रहा था अवसाद! डर ने न जाने कितने लोगों की जानें ले ली थीं और अभी भी मीडिया अपना डर बेचना बंद नहीं कर रहा है। देखना होगा कि आगे क्या होगा!

परन्तु मीडिया को यह देखना अवश्य होगा कि इस आपदा में उसकी भूमिका क्या है? जिससे फिर से अवसाद में कोई आत्महत्या न करे!

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.

Thanks for Visiting Hindupost

Dear valued reader,
HinduPost.in has been your reliable source for news and perspectives vital to the Hindu community. We strive to amplify diverse voices and broaden understanding, but we can't do it alone. Keeping our platform free and high-quality requires resources. As a non-profit, we rely on reader contributions. Please consider donating to HinduPost.in. Any amount you give can make a real difference. It's simple - click on this button:
By supporting us, you invest in a platform dedicated to truth, understanding, and the voices of the Hindu community. Thank you for standing with us.