कंगना रनाउत को जब से पद्मश्री से सम्मानित किया गया है, उसीके बाद से कंगना सेक्युलर्स के निशाने पर थीं। पर जब से कंगना ने कांग्रेस को अंग्रेजों के शासन का विस्तार बताया है, उसके बाद से कांग्रेसी और सेक्युलर्स का जैसे दिमागी संतुलन बिगड़ गया है और वह कंगना पर अश्लील हमले करने लगे हैं। सबसे मजे की बात तो यही है कि कल तक कश्मीर की आजादी की मांग करने वाली पूरी की पूरी जमात इन दिनों वर्ष 1947 को आजादी मिली, यह राग गाने लगी है।
सबसे मजेदार वीडियो आरफा खानम शेरवानी, जो सीएए आन्दोलन में रणनीति बदलने की बात करती हुई पकड़ी गयी थीं, और जिन्होनें कहा था कि हमें रणनीति बदलनी है, मुस्लिम बनकर विरोध प्रदर्शन नहीं करना चाहिए। क्योंकि हिन्दू धर्म का भी समर्थन चाहिए। उन्होंने कहा था कि यदि आप मजहबी नारा लगा रहे हों, तो क्या वह आपका हिस्सा बनेंगे? उन्होंने “हिन्दुओं” के अधिकारों के लिए बने सीएए के विरोध में कहा था कि हम अपनी विचारधारा से समझौता नहीं कर रहे हैं, बल्कि अपते तरीके और स्ट्रेटजी बदल रहे हैं। सभी जाति धर्म के लोप्ग साथ आएं! घर पर खूब मजहबी नारे पढ़कर आएं, उनसे आपको बहुत ताकत मिलती है।
वही आरफा कंगना को पागल कह रही हैं और कह रही हैं कि उनके पागलपन में एक पद्धति है। और कह रही हैं कि अधिक फोल्लोविंग वाले जैसे लोग नए हिंदुत्व नायकों के रूप में बताए जा रहे हैं, और वह लोग हमारे इतिहास को नकार रहे हैं, जिससे उनके संविधान विरोधी और लोकतंत्र विरोधी विचारों को ज्यादा स्वीकार्यता और वैधता मिल सके।
यही आरफा खानम थीं, जिन्होनें पूरे भारत के पुरुषों को इस बात के लिए कोसा था, कि खिलाड़ियों को बेटियां क्यों कहते हैं, उन्हें किसी रिश्ते से बाँधना पिछड़ेपन से बाँधना है और उन्हें केवल एक व्यक्ति ही रहने दें! आप पुरुष खिलाड़ी को तो बेटा नहीं कहते!”
प्रियांका गांधी की तस्वीर लगाए हुए एक हैंडल anchan shaila ने कई आपत्तिजनक तस्वीरें पोस्ट करते हुए कहा कि राखी सावंत इस बेवकूफ से तो हजार गुना बेहतर है
सबा नकवी इस बात से बहुत दुखी हैं कि कंगना रनाउत को काम मिल रहा है और मुनव्वर फारुकी को जेल भेजा गया, वह भी उसके लिए जो उसने बोला नहीं था।
सबा नकवी यह भूल जाती हैं, कि मुनव्वर फारुकी गोधरा स्टेशन पर निर्दोष कारसेवकों की जलती हुई ट्रेन को बर्निंग ट्रेन कहकर मज़ाक उड़ा रहा है। वह हिन्दुओं के धर्म के जीवंत प्रतीक प्रभु श्री राम और माता सेता पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी और वह भी हास्य के नाम पर!
एक यूजर ने महाराष्ट्र सरकार से प्रश्न करते हुए कहा कि कंगना रनाउत पर यूएपीए महाराष्ट्र सरकार क्यों नहीं लगाती है?
वहीं एनएसयूआई से जुड़े एक यूजर ने आपत्तिजनक ट्वीट करते हुए लिखा
यहाँ तक कि कांग्रेस के बड़े नेता, आनंद शर्मा ने भी पूरा वीडियो सुनने और देखने का कष्ट नहीं किया और लिख डाला कि कंगना के इस वक्तव्य से भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और कई अन्यों के बलिदान अपमानित हुए
यहाँ तक कि स्वाति मालीवाल, जिन्होनें कंगना के विषय में अश्लील टिप्पणी करने वालों के खिलाफ तो कुछ नहीं कहा, हाँ, बिना पूरा वीडियो देखे कंगना रनाउत के खिलाफ एक पत्र राष्ट्रपति के पास भेज दिया और कहा कि कंगना पर राष्ट्रद्रोह होना चाहिए। और यह नहीं भूलना चाहिए कि यही वह गैंग है जो देशद्रोही नारे लगाने वालों पर देश द्रोह न लगे, इसका पूरा प्रयास करता है!
एक और बात इस प्रकरण से उभर कर आई कि या तो लोगों में ज्ञान कम है या फिर उनमें अब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अहसास नहीं रह गया है। यह आजादी अभी अधूरी है, इस बात को तो श्री अटल बिहारी वाजपेई ने भी अपनी एक कविता में कहा था कि
पन्द्रह अगस्त का दिन कहता – आज़ादी अभी अधूरी है।
सपने सच होने बाक़ी हैं, राखी की शपथ न पूरी है॥
ऐसे ही समकालीन कविता और साहित्यबोध में समकालीन कविता का परिप्रेक्ष्य में कविता के साथ साथ वामपंथी आन्दोलन के बारे में लिखा गया है। इसमें लिखा गया कि पी डब्ल्यू ए के बिखराव के महत्वपूर्ण निष्कर्ष सुधीर पचौरी के अनुसार ये थे:
- सत्ता हस्तान्तातरण के वर्ग चर्चित्र को पी डब्ल्यू ए का नेतृत्व सही रूप में नहीं समझ सका
- नई स्थितियों में शासक वर्ग के टिकाऊपन के प्रति उसकी विचारधारा के प्रति पूरी तरह से नहीं जूझ सका
(पी डब्ल्यू ए अर्थात प्रगतिशील लेखक संघ – प्रोग्रेसिव राइटर एसोसिएशन)
- कम्युनिस्ट पार्टी के भटकाव सीधे सीधे पी डब्ल्यू ए के भटकाव बन गए।

यहाँ तक कि जो लोग आज कंगना को पागल कह रहे हैं, वह पेरियार के चेले हैं। दलित चिन्तक के नाम से मशहूर परन्तु वास्तविकता में हिन्दू विरोधी पेरियार ने कहा था कि यह आजादी नहीं है, केवल ब्राह्मणों को सत्ता हस्तांतरण है। इतना ही नहीं उन्होंने महात्मा गांधी के भारत के विचार का भी विरोध किया था। जिस दिन आजादी मिली उस दिन उन्होंने अपने समर्थकों से कहा था कि वह शोक मनाएं!
जस्टिस काटजू ने भी पिछले दिनों कहा था कि पेरियार का उद्देश्य कुछ भी रहा हो, परन्तु उन्होंने कहीं न कहीं अंग्रेजों की ही सहायता ही की थी।

अंत में हम कांग्रेस के महान नेता कन्हैया का वह वीडियो अपने पाठकों के साथ साझा कर रहे हैं, जिसमें आजादी का राग गा रहे हैं: और वह भी तब जब वह कम्युनिस्ट पार्टी में थे और साथ ही एक बड़ी पत्रकार जमात जो आज कंगना को कोस रही है, ऐसे वीडियो को क्रांतिकारी बता रही थी,
समस्या यह नहीं है कि कंगना ने क्या कहा, क्या सही और क्या गलत है, समस्या यह है कि एक बड़ा वर्ग, जो अभी औपनिवेशिक मानसिकता का गुलाम है, वह यह निर्धारित कर रहा है कि कौन क्या बोले और क्या नहीं? वह सिलेक्टिव रहा है और वह केवल अपने एजेंडे के लिए आजादी चाहता है, शेष केलिए नहीं