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Thursday, April 25, 2024

26 नवम्बर, दिन है श्री तुकाराम ओंबले को स्मरण करने का एवं मुख्यधारा मीडिया को उसका घिनौना चेहरा दिखाने का

 

हर वर्ष 26 नवम्बर को भारत एक ऐसे दिन को स्मरण करता है, जिस दिन सबसे बड़े आतंकी हमले से थर्रा उठा था। देश की आर्थिक राजधानी में जो पाकिस्तानी आतंकियों ने जो हमले किए थे, उनसे हर कोई हैरान था, हतप्रभ था। कैसे हो सकता था ऐसे?

कराची से नाव के रास्ते दस हमलावर मुम्बई में घुसे थे और वह जिस नाव से आए थे, उस पर चार भारतीय भी थे, जिन्हें उन्होंने मार डाला था। वह लोग कोलाबा के पास कफ परेड पर मछली बाजार में उतरे और फिर अपनी अपनी मंजिलों की ओर चले गए।

रात को लगभग साढ़े नौ बजे का समय था जब मुम्बई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनल पर दो आतंकियों ने गोलीबारी करनी शुरू कर दी थी।  उन्हीं में से एक था अजमल कसाब! जिसे जिंदा पकड़ा गया और फिर पड़ोसी देश के षड्यंत्र का पर्दाफाश हुआ।  षड्यंत्र यही था कि वह मारा जाए तो हिन्दू घोषित हो।

पाठकों को याद होगा कि उस समय पूरी तरह से हिन्दू आतंकवाद की थ्योरी गढ़ी जा रही थी और हेमंत करकरे, जिनकी जान इस दिन गयी थी, वह हिन्दू आतंकवादियों की जांच कर रहे थे।  बड़े बड़े लेखक और पत्रकार भी अजमल और शेष हमलावरों के हिन्दू होने की कामना कर रहे थे। जिससे किसी भी तरह से यह हिन्दुओं की हरकत घोषित की जाए और हिन्दुओं पर आतंकवादी होने का ठप्पा लगाया जा सके। इस्लामी आतंकवाद, जो वास्तव में लोगों की जानें ले रहा था,उसे निर्दोष प्रमाणित कर दिया जाए। इसीलिए सभी हमलावरों को नकली आईडी और हाथ में कलावा बांधकर ही भारत भेजा था।

26/11 Mumbai Attack के 12 साल: जब बम धमाकों और गोलियों की तड़तड़ाहट से दहली  थी मायानगरी - डाइनामाइट न्यूज़

इस विषय में हमने अपने पिछले लेख में बताया है कि कैसे खुशवंत सिंह जैसे लोग यह कामना कर रहे थे कि पहले तो वह मुसलमान न हो और अगर मुसलमान है भी तो पाकिस्तानी न हो, नहीं तो भारत और पाकिस्तान की दोस्ती को धक्का लगेगा।

भारत और पाकिस्तान के बीच दोस्ती की नींव हिन्दू आतंकवाद की कोरी गप्प वाली थ्योरी के आधार पर डाली जा रही थी। जबकि नोआखाली का नरसंहार हो, या फिर कश्मीर में हिन्दुओं की हत्या और पलायन, यह इस्लामी कट्टरता का चीख चीखकर प्रमाण दे रहे थे, परन्तु भारत के हुए हर आतंकी हमले में मुस्लिमों को क्लीन चिट देने और हिन्दुओं को फंसाने के लिए जो थ्योरी गढ़ी जा रही थी, उसमें यह हमला जैसे व्यावहारिक प्रयोग था।

यदि अजमल कसाब को तुकाराम ओंबले नहीं पकड़ते तो? यदि वह अपने प्राणों का बलिदान देकर भी उसे जीवित नहीं पकड़ते तो क्या होता? इस तो का उत्तर कितना भयावह होता, हिन्दुओं को इसकी कल्पना भी नहीं है।  इसका उत्तर मुम्बई के पूर्व कमिश्नर राकेश मारिया अपनी पुस्तक “लेट मी से आईटी नाउ” में लिखते हैं

“अगर सब कुछ योजना के अनुसार हुआ होता तो उसे हाथ में कलावे के साथ मरना था। हमें उसके पास से एक नकली पहचान पत्र मिला था, जिसमें उसका नाम था समीर दिनेश चौधरी जो हैदराबाद के अरुणोदय डिग्री और पीजी कॉलेज, वेद्रे काम्प्लेक्स, हैदराबाद में पढता था और वह बंगलौर का निवासी था। प्रशांत मादरे, रमेश महाले और दिनेश कदम उसके बारे में और जानने के लिए हैदराबाद निकल जाते और समाचारपत्रों में बड़ी बड़ी हेडलाइंस होतीं कि कैसे हिन्दू आतंकवादियों ने मुम्बई पर हमला किया।

पत्रकार टीवी पर बैठकर बंगलुरु में उसके परिवार और पड़ोसियों के साथ इंटरव्यू करते/ परन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ और अजमल आमिर कसाब, जो फरीदकोट, पाकिस्तान का निवासी था, यही उसकी पहचान थी और मैंने उससे पुछा “की करन आया है?”

राकेश मारिया की यह पुस्तक बहुत रोचक तरीके से मुम्बई में हुए आतंकी हमले के विषय में बताती है।  और वह कहते हैं कि अंडरवर्ल्ड के धंधे में सेक्युलरिज्म था, अर्थात छोटा राजन और दाऊद मिलकर काम करते थे। परन्तु इस “सेक्युलरिज्म” में दरार आई जब 1992 के दंगे हुए। इन दंगों के बाद वर्ष 1993 में मुम्बई में हुए सिलसिलेवार विस्फोटों ने देश को ही नहीं हिलाया, बल्कि अपराधियों के लिए भी मुस्लिम मजहब की महत्ता स्थापित कर दी। 

1993 के विस्फोट की योजना बनाते हुए, दाउद ने अपने हिन्दू साथी छोटा राजन को अँधेरे में रखा और जब यह विस्फोट हुए, तब वह दुबई में था, पर उसे नहीं पता चल रहा था कि आखिर हो क्या रहा है। जब उसे पता चला कि यह सारे विस्फोट दाउद ने कराए थे तो उसने दाउद से हर रिश्ते तोड़ लिए और दुबई से भाग गया।

इसी पुस्तक में राकेश मारिया भारतीय मीडिया पर प्रश्न उठाते हैं और लिखते हैं कि 26/11 को हुए हमलों में जब कमांडो ऑपरेशन चल रहे थे, तो लाइव टीवी कवरेज पकिस्तान की मदद कर रहा था।

वह लिखते हैं कि

“कमांडो ऑपरेशन शुरू हो गए थे, परन्तु लाइव टीवी कवर ने पाकिस्तान के हैण्डलर्स का काम सरल कर दिया था। उन्होंने आतंकवादियों को यह बताना शुरू कर दिया था कि कैसे उन्हें इनका सामना करना है।”

इसके बाद ही हम सभी को स्मरण होगा कि कैसे उर्दू मीडिया इस बात के पीछे लगगया था कि यह सारी साज़िश हिन्दुओं की है।

और फिर अजीज बर्नी की किताब, आरएसएस की साज़िश 26/11 लिखी थी, जिसमें पाकिस्तान को क्लीन चिट दे दी गयी थी। और इतना ही नहीं बर्नी ने तो एक लेख में भारतीय सेना को ही 26/11 के हमले का जिम्मेदार ठहरा दिया था।  हालांकि बाद में चुपके से अजीज बर्नी ने आरएसएस से माफी भी माँगी थी, पर?

जरा सोचिये, ऐसे में समस्त हिन्दुओं को तुकाराम ओंबले का पीढ़ियों तक आभार व्यक्त करना चाहिए और ऋणी रहना चाहिए, क्योंकि यह तुकाराम ओंबले का ही साहस और बलिदान है, जिसके कारण हिन्दुओं के माथे पर आतंकवादियों का टैग नहीं है। तुकाराम ओंबले ने एक लाठी के सहारे कसाब की एके 47 का सामना किया था। ओंबले ने कसाब की बंदूक की बैरल पकड़ ली थी, जिसके कारण उन्हें गोलियां लगीं, पर उन्होंने अंतिम सांस तक बैरल थामे रखा, जिससे कसाब गोली न चला पाए!

वह बलिदान हुए, परन्तु उन्होंने कसाब को जीवित पकड़ा!

आज का दिन मुख्यधारा की मीडिया को उसका आईना दिखाने, उससे प्रश्न पूछने और श्री तुकाराम ओंबले के नाम पर एक दीपक जलाने का होना चाहिए!

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