spot_img

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

spot_img
Hindu Post is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
23.1 C
Sringeri
Friday, April 19, 2024

10 नवम्बर 1659: वीर शिवाजी द्वारा अफजल वध: हिन्दुओं के लिए स्मरण रखने योग्य दिन

10 नवम्बर 1659, बीजापुर का सबसे बड़ा योद्धा कहा जाने वाला अफजल हिन्दुओं का खून बहाने और अपनी ही 64 बीवियों की हत्या करने के बाद, शिवाजी का खून करने आया था। बीजापुर का अफजल यह सोच रहा था कि शिवाजी को उसकी योजनाओं का कुछ पता नहीं था। परन्तु शिवाजी पर पुस्तकें लिखने वाले इस बात से सहमत नहीं है।

शिवाजी की सफलता का रहस्य उनकी गुप्तचर व्यवस्था थी, यही कारण था कि वह बड़े बड़े अभियान इतनी सरलता से कर पाए और साथ ही उनकी सूक्ष्म योजना बनाने का कौशल। यही कारण था कि वह आज बीजापुर के लिए दुस्वप्न बने हुए थे।

अफजल को दिल से शिवाजी से नफरत थी और अपनी इसी नफरत के चलते वह शिवाजी का नामोनिशान मिटा देना चाहता था। शिवाजी को यह पता था कि अफजल को मारना जरूरी था, परन्तु कैसे मारे? वह खुलकर कूद नहीं सकते थे। क्योंकि बीजापुर की सेना एक उन्मुक्त और मदांध सिंह की भांति थी जो अवसर प्राप्त होते ही अपने शत्रु को फाड़ देती।

वहीं अफजल खान को यह पता था कि वह शिवाजी को पराजित नहीं कर पाएगा, क्योंकि उसकी ज़िन्दगी के बारे में उसे यह पता चल गया था कि वह शिवाजी के हाथों मारा जाएगा। इसलिए वह पहले ही अपनी सभी 64 बेगमों को मारकर आया था। अफजल जब शिवाजी से युद्ध करने से पहले जीत की मन्नत मांगने के लिए गया था तो मौलवी ने अफजल को बताया कि उसने अभी अभी देखा कि अफजल का सिर कटा हुआ है और उसके धड के हाथ में तलवार है।

अपनी मौत निश्चित जानकर अफजल ने अपने हरम की सभी 64 बांदियों को बुलाया और उनसे कहा कि वह पानी में कूदकर अपनी जान दे दें! 64 में से 63 ने उसके हुकुम को माना, पर आख़िरी बांदी या बेगम, डूबने का साहस नहीं कर सकी।

saat-kabar-of-bijapur
उन बीवियों की कब्रें

तो अफजल ने उसके टुकड़े टुकड़े करवा दिए थे। इस डर से मुक्त होकर कि अब उसकी बेगमें या हरम की बांदियां किसी और से निकाह कर सकती हैं, वह शिवाजी से लड़ने के लिए निकल पड़ा। इधर शिवाजी का सामना ऐसे क्रूर इंसान से होने वाला था, जिसके दिल में उनके प्रति अथाह नफरत थी। शिवाजी की सेना भी अफजल के बारे में कहानियाँ सुनकर कुछ सशंकित थी। परन्तु शिवाजी चाहते थे कि वह अपनी सेना का भय दूर करें।

उन्होंने ऐसी सेना से मुठभेड़ का निर्णय लिया जिसमें अरब के सैनिक थे, अफगान थे और पठान भी थे। और साथ ही वह अब एक स्पष्ट उद्देश्य, स्पष्ट लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रही थी। शिवाजी बातचीत कर सकते थे, परन्तु वह चाहते थे कि उनकी सेना बड़े अभियानों के लिए तैयार हो। इसलिए उन्होंने लड़ने का निर्णय लिया। जब उन्होंने इस निर्णय को अपनी माँ के पास भेजा, तो उनकी माँ उन्हें आशीर्वाद देने के लिए उनके शिविर में आईं!

Jijabai Death Anniversary: मराठा साम्राज्य की वीरांगना व आदर्श माता की  वीरगाथा
(सांकेतिक चित्र)

इसी बीच अपनी योजना को सफल करने के लिए शिवाजी के पास एक प्रस्ताव भेजा। शिवाजी जानते थे कि यह प्रस्ताव झूठा है। पर उन्हें अफजल की योजना के विषय में नहीं पता था, इसलिए उन्होंने अफजल द्वारा भेजे गए प्रस्तावकों में से एक ब्राह्मण को रोक लिया।

शिवानी ने उनसे कहा कि वह उनके हिन्दू राष्ट्र निर्माण में सहायता करें और अपया योगदान करें। और उन्होंने अनुरोध किया कि वह अफजल खान की असली बात बताएं। ब्राह्मण दूत भी अफजल की क्रूरता से परिचित थे और उन्हें यह पता था कि सूचना देने के दुष्परिणाम क्या हो सकते थे, वह असमंजस में थे परन्तु शिवाजी ने उन सभी मूर्तियों एवं मंदिरों का भी स्मरण कराया जो अफजल खान ने तोड़ी थीं।

यह स्मरण होते ही उन्होंने शिवाजी से कहा कि यद्यपि उन्हें आधिकारिक जानकारी नहीं है, परन्तु उन्होंने खान के कर्मचारियों को बातें करते हुए सुना है कि संधि के नाम पर शिवाजी को बंदी बनाएँगे। शिवाजी ने उनका आभार व्यक्त किया और कहा कि वह युद्ध के उपरान्त उन्हें निराश नहीं करेंगे तथा यह कहा कि वह अफजल से जाकर कहें कि शिवाजी डरे हुए हैं और दिमाग खराब हो गया है।

अफजल अपनी विजय सुनिश्चित मानकर चल रहा था। फिर 10 नवम्बर का दिन आया, जब शिवाजी द्वारा बताए गए स्थान पर लगाए हुए शिविर में अफजल इंतज़ार कर रहा था। अफजल को अपने विशाल डीलडौल पर यकीन था और उसे लगता था कि वह शिवाजी को मसल देगा। अंतत: अफजल का इंतज़ार खत्म हुआ और शिवाजी के आने की उसे सूचना प्राप्त हुई। शिवाजी एक क्षण के लिए रुके, और उन्होंने दूर से ही अफजल को देखा! उसके विशाल शरीर को देखा! फिर धीरे धीरे कदम बढ़ाए। शर्त के अनुसार शिवाजी निशस्त्र थे, जैसे ही अफजल खान ने शिवाजी को देखा उसने उन्हें गले लगाने के बहाने अपने विशाल शरीर का फायदा उठाते हुए मारना चाहा। उसने अपनी बाजुओं से शिवाजी को कस कर लपेट लिया और गला दबाना चाहा परन्तु शिवाजी पूरी तरह से तैयार थे, और इससे पूर्व कि वह कुछ कर पाता वैसे ही शिवाजी ने सतर्कता बरतते हुए अफज़ल खान का पेट बाघनख (बाघ के नाखून से बना हथियार) से चीर दिया। अफजल की चालबाजियों के बारे में शिवाजी को पता था इसीलिए वह अपने अंगरखे में छुपाकर बाघनख लाए थे!

उस बाघनख से अफजल को तो मारा ही, साथ ही उसकी सेना शिवाजी के बिछाए हुए जाल में फंसी। वह वहीं की तरफ गयी जहां शिवाजी ले जाना चाहते थे। घोड़े, ऊँट और हाथी जंगल में वहीं पहुंचे जहां से वापसी का रास्ता न था और वापसी में शिवाजी की सेना ने मार्ग रोका हुआ था, हाथियों ने अपने ही घुड़सवारों एवं पैदल सैनिकों को कुचलना शुरू कर दिया!

अफजल का वध इतिहास की ऐसी घटना थी, और रणनीतिक जीत थी, जिसमें हिन्दुओं के लिए कई सन्देश छिपे हैं!

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.

Thanks for Visiting Hindupost

Dear valued reader,
HinduPost.in has been your reliable source for news and perspectives vital to the Hindu community. We strive to amplify diverse voices and broaden understanding, but we can't do it alone. Keeping our platform free and high-quality requires resources. As a non-profit, we rely on reader contributions. Please consider donating to HinduPost.in. Any amount you give can make a real difference. It's simple - click on this button:
By supporting us, you invest in a platform dedicated to truth, understanding, and the voices of the Hindu community. Thank you for standing with us.